आओ हरिद्वार चलें (कुंभ चलें)

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आओ हरिद्वार चलें (आओ कुंभ चले)

 

आओ हरिद्वार चलें

संपूर्ण भाव से श्रृंगारों से परिपूर्ण
पुष्पों के हारो का जाह्नवी (गंगा) हार पहन
मंद मंद मुस्कान मधुर मुख्या (गंगा), के लहरों की
पयोधर स्वर्ण कलश स मनोहर शिवाया (गंगा) धर्म कुंभ

आओ हरिद्वार चले!

सत रत तप पडिता (गंगा) का मंगलसूत्र
स्वर्णिम पुष्पों की माला में सजकर
रत्नों का भूषण लटक रहा
त्रिपथगा (गंगा) धर्म ध्वजा फहराए रही शंखनाद वेद कंठ अति सुंदर

आओ हरिद्वार चलें।

ऋषि मुनियों की वाणी से हर्षित हो मंदाकिनी ( गंगा) मन
आनंदपूर्ण मन सर्वोत्तम आभूषण
प्रियतम निकुंज राग में रंगी
मन कलरव करता देख लहर त्रिवेणी मन

आओ हरिद्वार चलें!

निकल रही किरणों की आभा से लगे सुनहरी गंग लहर
विद्युत उपकरणों से देदीप्यमान लग रहा हरिद्वार अति सुंदर
अटपटे घुंघराले घने केस दिव्य दिगंबर संतो के
भस्म मले श्रृंगार निराला किए, गले पुष्प माल लगे पुलकित से

आओ हरिद्वार चलें।

हे सर्वेश्वरी हे सरित पावनी आत्म वाहिनी जय मां गंगेश्वरी
हे शिव प्रिया हे पापनाशिनी हे निकन्जेश्वरी
हे त्रिभुवन लोकविहारणी हे विष्णुपदी हे ज्योतिसरी
हे सौभाग्य दायिनी हे मृत्युहरणी हे मुदित दायिनी पापनाशिनी गंग नदी

आओ हरिद्वार चले।

तुम करुणा के सागर विशाल हृदय मोक्ष द्वार तेरा
धन्य हुए भक्त जिसने किया दीदार तेरा
हे त्रिपथ गामिनी , हे विशाल नदी हे कृपाकांछ भागीरथी तपस्विनी
ही हिमगंगे हम तेरे बंदे हे कृपा दान दे शिव जटा निवासिनी

आओ हरिद्वार चलें।

लेखिका-सरिता पांडेय
महाकवि संत तुलसीदास जी की जन्म स्थली तुलसी तीर्थ राजापुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश

 

विश्व का सबसे बड़ा मानव समागम भारत के मुख्य नगरों में बहुत विशालतम रूप से मनाया जाता है जिसमें प्रथम उत्तर प्रदेश में प्रयागराज ,उत्तराखंड में हरिद्वार, मध्यप्रदेश में उज्जैन, महाराष्ट्र में नासिक, प्रयागराज और हरिद्वार का महाकुंभ अपने आप में एक अद्भुत अविस्मरणीय अकल्पनीय भव्यतम छटा बिखेरते हुए संपूर्ण जनमानस के मन को छूता हुआ धर्म उत्सव का एक अनूठा संगम जो जनमानस के मानस पटल एवं हृदय तल को सम्मोहित करता है। इस भव्य विशाल का महानदी मां गंगा के लिए मेरी कुछ पंक्तियां समर्पित है।

लेखिका- सरिता पांडेय
महाकवि संत तुलसीदास जी की जन्म स्थली तुलसी तीर्थ राजापुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश