विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
*कलम की आवाज और ताकत है सच बोलना और लिखना पत्रकारों का धर्म है तो सच को क्यो दबाया जाता है *
आज के दौर में सच उस वैश्या जैसा है जिसे पसंद तो सब करते हैं लेकिन कोई वैश्या को अपनी अर्धांगिनी बनाना नही चाहता ठीक उसी तरह सच सबको पसंद होता है लेकिन सुनना कोई नही चाहता?
इस दौर में सच परमाणु बम जैसा हथियार बन गया है जिसके प्रहार से घायल होने वाला पगला जाता है और अजीब अजीब हरकतें करने लगता है। जैसे उसे 440 वोल्टेज का करंट लग गया हो? वाकई सच में बहुत पॉवर होती है।
जनता और नेताओं ने भारतीय मीडिया को बिकाऊ घोषित कर दिया है तो कुछ बड़े पत्रकारों पर दलाल होने की तोहमत लगाई जा रही है। ऐसे माहौल में सच लिखने वाले पत्रकारों को मक्कार होने की उपाधि मिल रही है? लोकतंत्र के पहरेदार झूठे, मक्कार और दलाल हैं तो सच्चा कौन है
इसका फैसला आप खुद ही कर लीजिए कि कुछ नेता और कुछ अधिकारी कितने सच्चे और ईमानदार होते हैं। अगर ये सच्चे और ईमानदार होते तो देश में भ्रष्टाचार, घोटालों पर अल्प विराम लग चुका होता?
कुल मिलाकर सच तो वैश्या बन चुका है या आप सच को एक खिलौना भी कह सकते हैं क्योंकि सच की दुहाई देकर लोगों का दिल बहलाया जाता है। झूठ पर झूठ का पर्दा डालने से सच नही बदलता है। कुछ समय के लिए सच पेचीदा जरूर हो जाता है। जब सच सामने आता है तो सिर्फ सच की झंकार से झूठ की बुनियाद से बने बड़े बड़े किले धरासाई हो जाते हैं।
सच में बहुत दम होता है। सच बोलने और सुनने के लिए मनुष्य के पास विशाल हृदय होना चाहिए? हाथी जैसे शरीर में चूहे जैसा दिल रखने वाले सच की अहमियत कभी नही समझ सकते।
देश में सच का झंडा बुलंद कौन करे। सच बोलने वाले पत्रकारों को मौत की नींद सुला दिया जाता है या उसे सबक सिखाने के लिए जेल भेज दिया जाता है ताकि उसके दिल, दिमाग से सच बोलने का भूत या बुखार उतर जाए। जब सच बोलने वालों के साथ ऐसा सुलूक किया जाएगा तो सच कौन बोलेगा?
खैर कुछ पत्रकार इतने जज्बाती पागल होते हैं जो अपने परिवार की चिंता, समाज की फिक्र और मौत के डर की परवाह किये बगैर डंके की चोट पर सच बोलते हैं। जिन्हें मक्कार कहा जाता है और मुफ्त में बेहतरीन गालियों के उपहार मिलते हैं। सच बोलने वालों का विरोध तो ऐसे किया जाता है जिसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो?
हर बात के दो दृष्टिकोण होते हैं एक सकारात्मक तो दूसरा नकारात्मक पहलू होता है। इस दौर में सकारात्मक सोच रखने वाले ही सच को पसंद करते हैं जिनकी संख्या बहुत कम है लेकिन नकारात्मक सोच वालों की बहुत बड़ी फौज है जो सच बोलने वालों का नामोनिशान मिटाते के लिए काफी है। ऐसे में सच बोलना भी एक जंग और चुनौती है और सच बोलने वाले को खुद को सुरक्षित भी रखना है।
अगर सच की जंग में सच बोलने वाला शहीद हो गया तो किसी को कोई फर्क नही पड़ेगा लेकिन उसका परिवार जरूर बिखर जाएगा। इसलिए सच की जंग में सतर्कता की ढाल साथ रखना जरूरी है क्योंकि झूठों के सरदार धोखे से वार करते हैं। उनमें सच का सामना करने की हिम्मत नही होती है।
अब आप सच के उस पहलू पर भी गौर कर लीजिए जो आज का सबसे बड़ा सवाल है? एक दौर था जब पत्रकारिता एक मिशन हुआ करती थी, लेकिन पत्रकारिता का बाजारीकरण होने से समाचार पत्र विज्ञापन पत्र बन गए हैं। पत्रकारिता कब पक्षकारिता में तब्दील हो गई पता ही नही चला।
लोग आज भी मीडिया पर भरोसा करते हैं और साथ ही मीडिया के बिकाऊ होने की भी पुष्टि करते हैं। कुछ मीडिया संस्थान और पत्रकार । वो जब तक झूठ न बोल लें तब वह बीमार से नजर आते हैं। झूठ की संजीवनी से उनके अंदर ऐसे तरंगें उत्पन्न होती हैं जिससे वह झूठ को भी इस तरह पेश करते हैं जिससे झूठ भी सच नजर आता है। देश में सच बोलने वालों की गिनती उन बाघों की तरह है जिन्हें सरकार भी मारने की इजाजत नही देती। इसलिए सच बोलने वाले शेरों का विरोध न करके उनका सहयोग करें और मनोबल बढ़ाएं।
अगर सच बोलने वाले शेरों की प्रजाति विलुप्त हो गए तो इतिहास के किसी अध्याय में सच बोलने वाले शेरों की कहानी पढ़ने को मिलेगी।
सच बोलने वालों का इतिहास न बनने दें क्योंकि इतिहास बहुत ही दर्दनाक और प्रेरणादायक होता है। इतिहास की प्रेरणा से क्रान्ति की ज्वाला उठती है। उदाहरण के लिए आज़ादी के महासंग्राम ही देख लें, अगर अमर शहीद मंगल पांडेय देश में क्रांति के बीच नही बोते तो देश में आज़ादी की क्रांति कभी ज्वाला नही बनती और आज भी देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ होता? हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आज़ाद हो गए लेकिन कुछ नेताओं की गुलामी में इतने मशगूल हो चुके हैं कि सच बोलने वाला सबसे बड़ा दुश्मन लगता है। अगर कोई पत्रकार निडर होकर डंके की चोट पर सच लिख रहा है तो गुलामों की पूरी जमात उस पत्रकार के विरोध में खड़ी हो जाती है, लेकिन सोचने की यह बात है कि सच बोलने से पत्रकार को निजी लाभ क्या हुआ?
उसमे लोगो निजी राय देने आ जाते है रिश्तेदारी निकालते है कहां तक सही है ये !
इस बात दो लाइन लिख कर समाप्त करूंगा !!
मैं सच्चाई ही लिखूंगा चाहें कट जाएं उंगलियां सुनलें !
सौदा मरने के बाद भी होगा जाल में मछलियां सुनलें !!