कृषी पर निर्भर किसान का राजनैतिक उपहास

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कृषी पर निर्भर किसान का राजनैतिक उपहास 

भारत देश का किसान विपरीत परिस्थितियों में भी अपने परिश्रम और त्याग से अनुकूल स्थिति बनाने का प्रयत्न करता है परन्तु जब कभी वह अपने अधिकार के लिए आवाज उठाना चाहता है तो राजनीतिक खडयंत्र के तहत उसका उपहास शुरू करके उसे विपक्षी पार्टियों का एजेंट करार करने मे तनिक भी देरी नहीं लगती है क्योंकि ये राजनीतिक होसियार सत्ता से विमुख राजनेता बिना बुलाए इस तरह के आंदोलन मे खुद को शामिल कर लेते है और एक साधारण एवं सामान्य जीवन जीने वाले किसानों को उनके हक से महरूम करके अपनी रोटी सेंकने लगते है । यही भाजपा ने २०११ मे किया जब आज के प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि एम एस पी को कानून के तहत संवैधानिक रुप दिया जाय लेकिन कांग्रेस ने नही माना और किसान आंदोलन को भाजपा का एजेंडा बताया और आज जब मोदी सरकार है तो किसान आंदोलन कांग्रेस का एजेंडा ही नही भारत विरोधी भी नाम दिया जा रहा है । जिसका अखंड राजपुताना सेवासंघ निंदा करता है और किसान आंदोलन को समर्थन करते हुए मांग करता है कि सरकार जांच बैठाकर पता करे कि किसान आंदोलन मे असमाजिक तत्वों कौन है।

सरकारे किसानों के नाम पर तरह तरह की घोषणाएं करती हैं और कभी-कभी उसका अनुपालन भी करते हुए प्रतीत होती हैं लेकिन दुर्भाग्य से इस देश के राजतंत्र में समाहित नौकरशाही के भ्रष्टाचार के कारण उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है बल्कि योजनाओं का लाभ किसान के नाम पर दलालो की लंबी फेहरिस्त मिल जायेगा । उदाहरण के लिए आपको सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र मे नजदीकी बैंक मे जाने और उसके आसपास कुकुरमुत्ते की तरह फैल रही सहज योजना के कुकर्मी संचालको से मुलाकात करने की जरूरत है वे खुद बखुद आपको मिल जायेगे जो ५० पैसे का फोटो कापी (झेरोकस ) को दो रूपये से लेकर ५ रूपये ,आधार लिंक को १५० रूपये ,निवास प्रमाण पत्र के लिए ५०० रुपये , लेखपाल /प्रधान की संस्तुति के नाम पर शुल्क या अन्य किसी भी सरकारी योजनाओं के लाभ हेतु मदद के नाम पर शुल्क लेते दिखाई दे ही जायेगा जिसमें बैंक मैनेजर की मूक सहमति या भागीदारी भी सार्वजनिक रुप से महसूस की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश सरकार पशुपालन के लिए ७० हजार का कर्ज बिना शर्त देने की अधिकृत घोषणा करके बैठी है और बैंक दे भी रही है परन्तु सिर्फ दलालों के माध्यम से उन लोगों को जो अयोग्य हैं परन्तु दलालों के लिए अनुकूल है ।इस तरह की अनंत विसंगतियों का सामना करने वाला किसान जब अपनी मांग के लिए आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है तो कुशल नेतृत्व के अभाव मे राजनीतिक सौदे बाजी का शिकार होकर बदनामी हाथ मे लेकर हतास निराश होकर नशीब को कोसते हुए फिर जीवन संघर्ष मे लिप्त हो जाता है और लालची राजनेता सड़क से लेकर संसद तक उसका चीर हरण करने साथ ही उसके नाम पर कमाई का कोई भी अवसर नही छोड़ते है।

उदाहरण के रूप मे कोरोना काल मे अपना कार्य करने वाले डाक्टर, पुलिस और नगर निगम के कर्मचारियों के लिए देश के प्रधानमंत्री ताली से लेकर थाली तक बजवा दिये और सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करते रहे जबकि उनकी करतूत बाद मे भ्रष्टाचार के रूप सार्वजनिक रूप से दिखाई दिया और मानवता की हत्या सरेआम करते दिखाई दिए ।कोविड के नाम पर जो लूट इन लोगों ने किया वह शायद ही हम कल्पना भी नही कर सकते है लेकिन उस किसान के लिए कोई आभार नही प्रकट किया जिसके मेहनत के कारण ही देश भूख से अभी तक बचा हुआ है और देश के प्रधानमंत्री लोगो को मुफ्त का आनाज अभी तक बाट रहे है।

सत्तासीन लोग नमन करने वाले किसान को पाकिस्तान का एजेंट , कांग्रेस का दलाल जैसे अनेकों उपहार दे रहे है जिसका परिणाम भविष्य की कल्पनाओं मे छिपा हुआ है जिसका आभास आज सत्ता मे बैठे लोग नही महसूस कर रहे है क्योंकि चाटुकारिता के तहत यह उपहार हमारे ही घर से निकले बंधुओं की तरफ से मिल रहा है जो किसान को राजनीतिक चश्मे से देख रहे है और अपनी वफादारी प्रदर्शित कर रहे है। ध्यान रहे कभी इसी तरह के लोग कांग्रेस को भी मदमस्त कर दिये थे जिनका आज नाम लेना भी कोई पसंद नहीं करता है । ईश्वर इन सभी को सद्बुद्धि प्रदान करे और अन्नदात को उसका उचित अधिकार प्राप्त हो सके।

हम कर्म के दूसरे भाग को भी आप सभी के संज्ञान मे लाना चाहते है और वह है सरकारों के हितैषी देश के उद्योगपति या व्यवसायी जो राजनेताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बने हुए है और सभी सरकार रात दिन उनके लिए माहौल बनाने के चिंतित रहती है । उद्योगपति देश के किसी भी क्षेत्र मे उद्योग लगाने से पूर्व सरकार से सड़क, सहूलियत वाली बिजली और दूसरी तरह के साधन प्रसाधन हासिल करने के उपरांत ही उद्योग जगत की स्थापना करता है जबकि किसान कभी भी किसी तरह के सरकारी साधन, सहयोग की अपेक्षा नही करता है। वह इस देश का नागरिक है और कृषि उसका कार्य हैं उसी का अनुपालन करते हुए वह कृषि को धर्म मानते हुए कार्य करता है। जबकि उद्योगपति सदैव इस ताक में रहता है कि धन संग्रहित करने के लिए सरकार का दोहन करें। घोटाला करना उद्योगपतियों का आचरण मे ही समाहित है इसको सार्वजनिक रूप मे देखा जा सकता है। कभी इंसुरेंस के नाम पर तो कभी क्षति के नाम पर कभी मेडिकल के नाम पर तो कभी तो प्राकृतिक नुकसान का भी लाभ लेने का सरकारी कर्मचारियों के माध्यम से प्रयत्न करते है।

विडंबना है कि भारत किसानों का देश है लेकिन किसान के नेतृत्व मे उसको संसद में बैठने के अधिकार से ही वंचित कर दिया गया क्योंकि उनकी सोच है यदि वह संसद मे गया तो अपनी बात रख सकता है तब उसका अधिकार देना पडेगा और अपना हीत अनहित जान जायगा तो राजनीतिक रुप से गुमराह करना मुश्किल होगा। इसलिए उसको किसी भी तरह से संसद का नेतृत्व ना मिले उसका पूरा ध्यान रखा गया जबकि दूसरी तरफ देश की संसद मे पिछले दरवाजे से आने वालों की कतार बना दिया गया । बौद्धिक के नाम पर व्यवसाई के नाम पर ,कला जगत के नाम पर ऐसे नमूने बैठाये जाते हैं जो कि सिर्फ या तो चाटुकारिता करते हैं या तो व्यक्तिवादी भजन करते हैं।

इतिहास गवाह है कि इस देश को इनकम टैक्स देने के नाम पर सबसे ज्यादा घोटाले का कार्य इस देश का उद्योगपति, व्यवसायी , अधिकारी एवं राजनेताओं ने किया है लेकिन किसी किसान का नाम आज तक किसी घोटाले की सूची मे नही आया है । क्या आज के समय मे यह उसकी निर्मलता का प्रमाण नही माना जाना चाहिए।इस देश की सुरक्षा मे अपने बेटों की बलि चढ़ाकर देश को गौरवान्वित करने वाले किसान के प्रति इस तरह कि मानसिकता का आप समर्थन करते है । यदि हा तो दुर्भाग्य है और यदि तो आवाज बुलंद करे क्योंकि यह मोदी विरोध नही है बल्कि एक मानवीय सहयोग है।

सरकारी तंत्र के इर्द-गिर्द मधुमक्खियों की तरह घुमने वाले व्यवसायी, उद्योगपति ,राजनेता एवं सरकारी तंत्र में बैठे भ्रष्टाचारी अधिकारी इस देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं लेकिन हम इन पर कार्यवाही करने के बजाय उन किसानों पर क्रोधित मुद्रा दिखा रहे है जिनको प्रेम की आवश्यकता है और उनके दुख को हमदर्दी से समझने की जरूरत है।

सरकारे कोई भी रही हो लेकिन लुटता सदैव किसान ही रहा है वह चाहे प्राकृतिक रहा हो या अप्राकृतिक जबकि दूसरी तरफ उद्योगपति हमेशा अपना मुनाफा ध्यान मे रखने का प्रयत्न करता है वह चाहे इंश्योरेंस कंपनी हो या सरकारी कानून के तहत किया गया सुविधा शुल्क के उपरांत सुविधानुसार कार्य।

जो लोग सरकार के किसान नीति का समर्थन कर रहे ये अंधभक्त है किसान नही ? किसानों को क्या तकलीफ है वो सिर्फ किसान ही जानता है ? कांग्रेस और भाजपा सिर्फ नौटंकी कर रही हैं और स्वयं को किसानों की हितेषी दिखाई देना चाहती है जबकि हकीकत यह है कि एक भी राजनीतिक दल किसानों का हितेषी नही है, कांग्रेस ने 70 साल से किसानों का शोषण किया, उनकी उपज का भाव बढ़ने नही दिया और उनको लूटने के लिए व्यापारियों को खुली छूट दे दी, और अब इसी तरह भाजपा भी किसानों को मूर्ख बनाकर लूटना चाहती हैं जो कि अब किसान मानने से इंकार करते है।

किसान तभी संतुष्ट होंगा जब सरकार समर्थन मूल्य बढ़ाने के साथ किसानों की फसल को खरीदने की भी गारंटी दे, अन्यथा ये सब उद्योगपतियों को फायदा पहुचाने की कोशिश है, नादान और नासमझ लोग जमीनी हकीकत के बारे में जानकारी नहीं रखते है ,

अंतिम शब्द सबसे कठिन समय मे किसान ही कार्य कर सकता है क्योंकि वह हानि लाभ का गुणा-भाग नही करता हे और ना ही उस तरह से घोटाले मे ही समाहित रहना पसंद करता है।

जय किसान

अखंड राजपुताना सेवासंघ

Posted by :- Sub Editor (R.P.Singh) Maharashtra