विजयदशमी विशेष : बुराई पर अच्छाई की विजय

पीठ पीछे दुसरो की निंदा करना दुनिया का सबसे घृणा वाला कार्य है

दुसरो मैं बुराई खोजने वाला इंसान हमेशा खुद को महान एवं सही साबित करने मैं लगा रहता है कि उसके समान कोई नही है वो जो करता है वो सर्वश्रेष्ठ है बाकी अन्य कोई भी व्यक्ति कार्य करे वो सभी कार्य व्यर्थ बेकार है !
“हमेशा बुराई या कमी ढूंढने वाला व्यक्ति उस मक्खी की तरह होता है, जो शुद्ध और स्वच्छ को छोड़कर गन्दगी में ही रमता है” वह केवल दुसरो की बुराई ही करता है

एक बार एक इंसान ने कोयल से कहा “तू काली ना होती तो कितनी अच्छी दिखती।”, समुन्द्र से कहा “तेरा पानी खारा ना होता तो कितना अच्छा होता।”,गुलाब से कहा “तुझमे कांटे ना होते तो कितना अच्छा होता।”, तब तीनो एक साथ बोले कि ” हे मानव तुझ में दुसरो कि “कमिया” देखने की आदत ना होती तो तू कितना अच्छा होता।” कहने का मतलब है कि “दुनिया में कोई इंसान परिपूर्ण नहीं होता”, हर इंसान में कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां होती है, ये अलग बात है कि किसी में अच्छाइयां ज्यादा और बुराइयां कम तो किसी में बुराइयां ज्यादा और अच्छाइयां कम। लेकिन हमें हमेशा लोगो की बुराइयां या कमियों को नजरअंदाज़ करके उसकी अच्छाइयों को देखना चाहिए, क्योंकि उनकी अच्छाइयों को देखकर ही हम अपने आप को और अच्छा बना सकते है।
“बुरे लोगो को दुसरे की बुराई में ही मजा आता है”
बहुत समय पहले की बात है। एक बार एक महात्मा गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे।

तभी एक राहगीर व्यक्ति आया और उनसे पूछा, “महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ?”
महात्मा बोले, “जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?” ”मत पूछिए महाराज, वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं.”, राहगीर व्यक्ति बोला।
महात्मा बोले, “इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर व्यक्ति आगे बढ़ गया।
कुछ समय बाद एक दूसरा व्यक्ति वहां से गुजरा।उसने भी महात्मा से वही प्रश्न पूछा, “मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?”
”जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?”, महात्मा जी ने इस राहगीर व्यक्ति से भी वही प्रश्न पूछा।
“जी वहां तो बड़े सभ्य, सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं.”, राहगीर बोला।

”तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे…सभ्य, सुलझे और अच्छे ….”, गुरु जी ने अपनी बात पूर्ण की और दैनिक कार्यों में लग गए।पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे और राहगीर व्यक्ति के जाते ही उन्होंने पूछा, “क्षमा कीजियेगा गुरू जी पर आपने दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें क्यों बतायी।”
महात्मा जी गंभीरता से बोले, “शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते जैसी वे हैं, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं जैसे कि हम खुद हैं। हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं।”

शिष्य उनके बात समझ चुके थे और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया।
“हर एक चीज में एक खूबसूरती, एक अच्छाई होती है, लेकिन हर कोई उसे नहीं देख पाता”

पैर से अपाहिज एक भिखारी सदा प्रसन्न और खुश रहता था, किसी ने पूछा : अरे भाई, तुम भिखारी हो, लंगड़े भी हो, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी तुम इतने खुश रहते हो, क्या बात है ? वह बोला : बाबूजी भगवान् का शुक्र है कि में अँधा नहीं हूँ , भले ही मैं चल नहीं सकता; पर देख तो सकता हूँ, मुझे जो नहीं मिला मैं उसके लिए भगवान् से कभी शिकायत नहीं करता बल्कि जो मिला है उसके लिए धन्यवाद जरुर देता हूँ, यही हैं दुःख में से सुख खोजने कि कला…

“जिस प्रकार हवा के झोंके किसी चट्टान को नहीं उखाड़ सकते, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति पर उसकी बुराई या तारीफ करना कोई असर नहीं डाल सकता”
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था। चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को,

जहाँ भी इसमें कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे। जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी। यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था। तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उसके दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई। उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे। उसने अगले दिन यही किया। शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया। वह संसार की रीति समझ गया। “कमी निकालना, निंदा करना, बुराई करना आसान, लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है”
कहते है “दूसरों की कमी निकालने के लिए जब उनकी तरफ हम एक उंगली उठाते है तो ध्यान रहें कि बाकी की चारों उंगलिया हमारी तरफ ही इशारा कर रही होती है”, मतलब साफ़ है कि आप दूसरों की कमिया तभी गिना सकते है जब आप में कोई कमी ना हो, अगर आप में भी कुछ कमियां या बुराइयां है तो आपको ये हक़ बिलकुल नहीं है कि आप दूसरों की कमिया गिनाये।
एक बार की बात है, एक नवविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा। अगली सुबह, जब वे नाश्ता कर रहे थे, तभी उसकी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं, – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “
उसके पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया।

एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे। पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”
उसका पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा।
पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला-बुरा कहना शुरू हो जाती।
लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे। पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत की तरफ देखा, ” अरे वाह, लगता है इन्हें अकल आ ही गयी…आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं, ज़रूर किसी ने टोका होगा !”
उसका पति बोला, ”नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका।”

“तुम्हे कैसे पता?”, पत्नी ने आश्चर्य से पूछा।
“आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया, इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं।”, पति ने बात पूरी की।
ज़िन्दगी में भी यही बात लागू होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं। किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है!
और आज के इस लेख का अंत मैं कबीर के इस दोहे से करना चाहूंगा:

“बुरा जो देखण मैं चला, बुरा ना मिल्या कोई,
जो मन खोजा आपणा, मुझसे बुरा ना कोई”
अमन नारायण अवस्थी
राष्ट्रीय अध्यक्ष संस्थापक
अटल जन शक्ति संगठन
आन्या एक्सप्रेस (प्रधान सम्पादक)