वनों की छत्रछाया में हुआ भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास- डीएम

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वनों की छत्रछाया में हुआ भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास- डीएम

– वन अग्नि सुरक्षा व जागरूकता गोष्ठी के तहत किया जागरूक

चित्रकूट ब्यूरो: मानिकपुर रेंज परिसर में मंगलवार को वन अग्नि सुरक्षा एवं जागरूकता गेाष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें जिलाधिकारी ने वनों का सांस्कृतिक और आथिर्क महत्व बताया तथा जंगलों को आग से बचाने के लिए उपस्थित आम नागरिकों व अधिकारियों को जागरूक किया।
गोष्ठी में उन्होंने कहा कि वनों की छत्रछाया में ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ। आज भी वनों का महत्व किसी से छिपा नहीं है। सही शब्दों में कहें, तो पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए जंगलों का होना बेहद जरूरी है। इन्हीं की वजह से धरती पर बारिश और शुद्ध हवा मिलती है। साथ ही यह जंगल कई जानवर और पक्षियों का घर होता है। इसे आग से सुरक्षित करना हम सबका दायित्व है। कहा कि मनुष्य अपने स्वाथर् के लिए लगातार पेडों की कटाई कर रहा है और महुआ बिनने वाले आग लगा रहे है। जिसकी वजह से जंगल उजड़ते जा रहें है। उन्होंने गोष्ठी में उपस्थित ग्रामीणों से अपील की कि जंगल की आग पर नियंत्रण के लिए सामूहिक सहभागिता आवश्यक है। हमें किसी भी कीमत पर जंगलों को आग से बचाने का प्रयास करना चाहिए। प्रभागीय वनाधिकारी आर के दीक्षित ने बताया कि जंगलों में महुआ बिनने वालो के द्वारा आग लगाई जाती है। जिसके कारण कई हेक्टेयर वन जलकर राख हो जाता है। बताया कि जिले में सबसे ज्यादा अमचुरनेरुआ, चुरेहकेशरूआ, मडैयन, सिद्धपुर, कोलुहा, रानीपुर वन्य जीव विहार, कोटाकंदैला, बनाड़ी सहित अन्य गाव बेहर संवेदनशील है, इन जगहों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वनों में आग लगने से पयार्वरणीय संकट पैदा होने के साथ ही जंगली जानवरों को भी नुकसान पहुंचता है। जंगलों में आग लगने से पानी के प्राकृतिक स्रोत भी सूख जाते हैं। इससे गमिर्यों में पहाड़ी क्षेत्रों में भी पेयजल संकट पैदा हो जाता है। कहा कि जंगलों को आग से बचाने के लिए ज्वलनशील पदाथोर् को हमेशा जंगलो से दूर रखना चाहिए और जंगली रास्तों से गुजरते समय जलती हुई माचिस की तीली व बीड़ी, सिगरेट जंगल में नहीं डालनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जंगल पयार्वरण के अभिन्न अंग हैं, इनकी रक्षा करना प्रत्येक मानव का कतर्व्य है।

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