स्त्री सतीत्व के प्रभाव में त्रिमूर्ति ईश्वर को भी बनना पड़ा बालक
भक्तिपाश में बंध धारण किया नरसिंह स्वरूप
रामपुरा (जालौन ) परमात्मा भक्तों का मान रखने के लिए विभिन्न स्वरूप धारण करके पृथ्वी का भार हरण करने के लिए अवतार लेते हैं ।
उक्त विचार प्रसिद्ध कथावाचक एवं समाज सुधारक आचार्य रजनीश महाराज ने ग्राम जायघा में शिवशंकर सिंह राजावत एवं शिवनारायण सिंह राजावत के आवास पर हो रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान व्यक्त करते हुए माता अनसुइया की उस कथा का बहुत सुंदर वर्णन किया जिसमें उमा रमा ब्रह्माणी की जिद पर पृथ्वी लोक की पतिब्रता स्त्री मां अनुसुइया के सतीत्व परीक्षा करने हेतु अपने पति ब्रह्मा विष्णु महेश को भेज जहां त्रिदेव भगवान को माता अनुसूया के पतिव्रत घर्म के कारण बाल रूप में उनके आंगन में खेलने को विवश कर दिया । आचार्य रजनीश ने कहा कि यदि स्त्रियां परमात्मा में विश्वास कर धर्म मार्ग पर चलते हुए अपने पति को परमेश्वर मान सत्य निष्ठा से उनके बचन के अधीन रहकर उनकी सेवा करें तो वह घर को स्वर्ग से भी सुंदर बना सकती हैं और अपनी संतान को भी अच्छे संस्कार दें तो उन माता बहनों को चिरकाल तक अच्छे व्यवहार के लिए याद किया जाता रहेगा। उन्होंने कहां कि यह मर्यादा व परमात्मा की यह कृपा सिर्फ माता बहनों पर ही नहीं अपितु पुरुष वर्ग पर भी होती है। सच्चे भक्त भगवान को अपने बस में करके उन्हें अपने निर्णय बदलने पर विवश कर देते हैं जैसे पितामह भीष्म ने भगवान श्री कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा भंग करने पर विवश कर दिया । इसी प्रकार पांच वर्षीय बालक प्रहलाद की भक्ति में बंधे भगवान को मनोहर रूप त्याग कर नरसिंह का स्वरूप धारण करना पड़ा व अपने भक्त का मान रखने के लिए तप्त खम्बे से प्रकट होना पड़ा और पृथ्वी का भार हरण करने के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया। आचार्य ने कहा यदि आज भी मनुष्य धर्माचरण कर सत्य एवं प्रिय बोले तो उसकी वाणी सिद्ध होगी और परमात्मा को उसके अधीन रहकर उसके प्रत्येक कथन की मर्यादा रखने के लिए किसी न किसी स्वरूप में पृथ्वी आना पडेगा।