गोस्वामी तुलसीदास जी का विश्व के आध्यात्मिक साहित्य में सर्वोपरि स्थान (सरिता पान्डेय)

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गोस्वामी तुलसीदास जी का विश्व के आध्यात्मिक साहित्य में सर्वोपरि स्थान…

 


आध्यात्मिक जगत में एवं सर्वोपरि भारतीय साहित्य में गोस्वामी तुलसीदास जी का अनुपम स्थान है। जिस ज्ञानदीप को कविवर गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रज्वलित किया वह आज भी प्रकाशमान है। विश्व के आध्यात्मिक साहित्य में तुलसी की रचना रामचरितमानस का स्थान सर्वोपरि है। इस महाकाव्य में मन को मुग्ध करने की अलौकिक परमेश्वरी शक्ति विराजमान है।


रामचरितमानस में वर्णित मानवता धर्म निष्ठा और कर्तव्य परायणता का संदेश आज के युग में बड़ा महत्व है गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रति हमारी सबसे बड़ी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि कर्तव्य परायणता और मानव सेवा के उनके संदेश को हम अपने जीवन में उतार पाए।

 


भक्ति पक्ष की प्रबलता के कारण ही तो भक्त यह सोचना भूल जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी की चेतना में यदि इस तरह का वाद विवाद चलता रहा और यूं ही आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे, तो उनकी चेतना विज्ञान बुद्धि और विवेक से विकल्प ना निकाला गया तो वह दिन दूर नहीं जब गोस्वामी तुलसीदास जी जैसी चेतना का हमारे जीवन में मूल्य ही नहीं रह जाएगा यह शब्द कटु अवश्य है परंतु नितांत ग्रहणीय है।

 


मुझे यह लिखते हुए तनिक भी अफसोस नहीं है कि आज राम नाम का कीर्तन जोर शोर से लाउडस्पीकर से किया जाता है वैसा पहले कभी नहीं होता था और फिर भी लोगों के अंदर परम तत्व के प्रति आस्था थी। आज कीर्तनिया जोर शोर से राम नाम का कीर्तन करते हैं लेकिन राम के चरित्र को अपने जीवन में नहीं उतारते हैं यह अत्यंत निंदा का विषय है, कि हम उस परम चेतना को भूल रहे हैं जिससे हमारा जीवन उद्धार है।


गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्म स्थली राजापुर चित्रकूट पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई इसके पीछे पूज्य मुरारी बापू जी का बहुत बड़ा योगदान है, आदरणीय बापूजी मानस को शिरोधार्य कर ऐसी जगह राम कथा गाई ऐसी जगह तुलसी का जयकारा बुलाया ऐसी जगह मां रत्नावली का जयकारा बुलाया जहां पर शायद गोस्वामी तुलसीदास जी का भी पहुंचना असंभव था।

आज गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म को 450 वर्ष होने को है लेकिन विकास और सुंदरीकरण उस गति से नहीं हुआ जिस गति से इतनी सदियां गुजर गई? तुलसी स्मारक नाम से विस्तृत कहा जाएगा ना लघु, जहां वहां सुंदरीकरण होना चाहिए वहां आज स्मारक शौचालय का अड्डा बन कर रह गया है क्या यही आस्था है गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रति, अगर यही आस्था है तो उन्हें रामचरितमानस जैसा पवित्र ग्रंथ अपने घर में रखने के हकदार नहीं है।

यहां रामलीला होती है, रासलीला भी होती है, बहुत से पूजनीय संत आते हैं और अपनी वाणी से कथा सुनाकर गोस्वामी तुलसीदास जी का जयकारा बुलाकर चले जाते हैं, पावन महीनों में राजापुर में घर-घर रामचरितमानस का पाठ होता है लेकिन इतना होने के बावजूद भी लगता है कि यहां कुछ नहीं होता है। लोग अपने आप को धन्य महसूस करते ही नहीं है कि हम ऐसी पावन नगरी में है तो हम इस नगरी का सुंदरीकरण भव्यतम दिव्य विशाल रूप देकर एक ऐसे संत की नगरी को देदीप्यमान कर दें कि जब भी हम कहीं जाए और लोग यहां की चर्चा करें तो अपने आप में हम यह गर्व महसूस करें कि हम तुलसी तीर्थ राजापुर के हैं पता नहीं कब गोस्वामी तुलसीदास जी के नगरी का विशालतम रूप से विकास होगा कुछ नहीं कहा जा सकता जनप्रतिनिधि आते हैं लंबे चौड़े भाषण देकर चले जाते हैं । आध्यात्मिक जगत में गोस्वामी तुलसीदास जी को सर्वोच्च स्थान मिला लेकिन अपने ही जन्मस्थली में पता नहीं कब तक वह दीन हीन रहेंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है।


सरिता पान्डेय
          तुलसी तीर्थ राजापुर चित्रकूट
                        उत्तर प्रदेश