कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच अमेरिका में हुई स्टडी में चौंकाने वाली बात सामने आई है। टीबी (यक्ष्मा/तपेदिक) जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए नवजात शिशु को दिया जाने वाला बीसीजी का टीका कोरोना वायरस संक्रमण में सुरक्षा के तौर पर सामने आया है।

इस स्टडी के मुताबिक कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत के मामले उन देशों में अधिक हैं, जहां बीसीजी टीकाकरण की पॉलिसी या तो नहीं है या फिर बंद हो गई है। वहीं, जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण अभियान चल रहा है, वहां कोरोना संक्रमण और मौत के मामले अपेक्षाकृत कम हैं।

न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस की ओर से बीसीजी टीकाकरण वाली आबादी पर कोरोना संक्रमण के असर का विश्लेषण करने के लिए यह स्टडी की गई। इसमें पाया गया कि बिना बीसीजी टीकाकरण वाले देशों जैसे इटली, अमेरिका, लेबनान, नीदरलैंड और बेल्जियम की तुलना में भारत, जापान, ब्राजील जैसे बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत के मामले कम हैं। हालांकि चीन में भी बीसीजी टीकाकरण पॉलिसी है, लेकिन चूंकि कोरोना वायरस की शुरुआत वहीं से हुई, इसलिए इस स्टडी में चीन को अपवाद माना गया।

दरअसल, भारत समेत कई देशों में जन्म के बाद नवजात शिशु को बीसीजी (Bacillus Calmette-Guérin) का टीका लगाया जाता है। यह टीबी यानी तपेदिक और सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों से बचाव के लिए दिया जाता है। विश्व में इस टीके की शुरुआत साल 1920 में हुई। ब्राजील में तभी से, जापान में 1947 से जबकि भारत में 1948-49 से इसकी शुरुआत हुई। वहीं ईरान में इसकी शुरुआत 1984 में हुई। इस अनुसार से देख जाए तो टीके की शुरुआत वाले वर्ष से पहले जन्म लेने वाली आबादी, जो अभी जीवित है, इस टीके से वंचित है।

इस स्टडी में अलग-अलग देशों की स्वास्थ्य सुविधाएं, टीकाकरण कार्यक्रमों और कोरोना संक्रमण के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि बीसीजी टीकाकरण से टीबी के अलावा वायरल संक्रमण और सांस संबंधी सेप्सिस जैसी बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। ऐसे में वैज्ञानिक बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम होने की उम्मीद जता रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जहां बीसीजी की शुरुआत पहले हुई, वहां कोरोना से हुई मौत के आंकड़े बहुत कम हैं। वहीं, इटली, अमेरिका, स्पेन जैसे देशों में बीसीजी टीकाकरण अभियान नहीं चलता, इसलिए यहां कोराना संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन, इटली या अमेरिका की तुलना में भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण ज्यादा व्यापक नहीं होगा। सभी देशों में पाए गए इस वायरस के स्ट्रेन यानी जेनेटिक वैरिएंट में अंतर पाया गया है। भारत में वैज्ञानिकों ने कोरोना के स्ट्रेन को अलग करने में कई देशों से पहले कामयाबी पा ली थी। ऐसा करने वाला यह दुनिया का पांचवां देश है। 

भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना के 12 नमूनों की जांच कर जिनोम की जो क्रम तैयार किया है, उसकी प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक देश में मिला वायरस सिंगल स्पाइक है, जबकि इटली चीन और अमेरिका में मिले वायरस ट्रिपल स्पाइक हैं। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में फैला वायरस इंसानी कोशिकाओं को ट्रिपल स्पाइक वाले वायरस की अपेक्षा कम मजबूती से पकड़ पाता है।

हालांकि वैज्ञानिकों यह बात भी जोड़ते हैं कि यह एक प्राथमिक स्टडी है और इस आधार पर बिना ट्रायल के इसके परिणाम पर बहुत निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। फिर भी इस स्टडी ने कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में एक उम्मीद दिखाई है।

भारत के लिए कितनी सुकून भरी बात?

देश में आजादी के बाद साल 1948 में बीसीजी टीकाकरण पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरु हुआ।  साल 1949 से इसे देशभर के स्कूलों में दिया जाने लगा। इसके तीन साल बाद 1951 में बड़े पैमाने पर टीकाकरण होने लगा। वहीं, जब 1962 में राष्ट्रीय स्तर पर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत हुई तो देशभर में बच्चों को जन्म के समय ही यह टीका लगाया जाने लगा।

विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में 97 फीसदी बच्चों को बीसीजी का टीका लगा हुआ है। हालांकि टीकाकरण अभियान की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाली आबादी, जो अभी जिंदा हैं, उन्हें यह टीका नहीं लगा हुआ है। 

वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा मान लेना जल्दबाजी होगी कि बीसीजी का टीका ले चुकी आबादी को कोरोना संक्रमण से मौत का खतरा नहीं होगा। हो सकता है कि बीसीजी कोरोना वायरस से लंबे समय तक सुरक्षा न दे पाए। इस मामले में ट्रायल जरूरी है।

यह स्टडी सामने आने के बाद ब्रिटेन, जर्मनी और नीदरलैंड ने कहा है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की देखभाल कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को बीसीजी का टीका लगाकर ट्रायल शुरू किया जाएगा। ऑस्ट्रेलिया ने भी बीते शुक्रवार को कहा है कि वह करीब चार हजार स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों पर बीसीजी वैक्सीन का ट्रायल शुरू करेगा। ट्रायल में यह देखा जाएगा कि क्या इस टीके से उनका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।  हेल्थ वर्कर्स का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।