राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरे कलम की आवाज

घर-घर यहां पर कन्या पूजी जाती है,
फिर वही कन्या के ” भ्रूण हत्या ” पर
यहां बस चुप्पी चुप्पी ही नजर आती हैं
शायद स्वार्थ से ही बिटिया नजर आती हैं।।

जन्म से पहिले ही मार दी जाती हैं बेटियां
बधाइयां यहां किस बात की दी जाती हैं,
बेटी दिवस पर ही यहां शायद दुनियां
बेटियां होने का उत्सव मानती नजर आती है ।।

जो हो जाए इन्हें अपनी शक्ति का आभास
बेटियां भी रच सकती हैं एक नया इतिहास
आखिर बेटियां ही सृजन करती है संसार,
फिर बेटियों पर क्यूं हर प्रथा थोपी जाती हैं।।

सूरज बनकर जो जन्म लेती है गर्व से
तप तप कर ही वे स्वर्ण कहलाती हैं
अपनी शिक्षा संस्कार के बलबूते पर
बेटियां रेगिस्तान में भी फूल खिलाती हैं।।

आज बदलो अपना अब आचरण तुम
न रक्त पात करो, न मारो इनको गर्भ में
जो तुम्हारे विचारों से निखार पा जाएंगी
एक दिन यह बेटियां शिखर छू जाएंगी ।।

विश्वास करो तुम प्रेम करो बिटिया से
अभिनंदन इनका तुम से स्वागत करो
व्यर्थ तुम्हारा ये जीवन हो जाएगा
यदि बिटिया के प्रति तुम्हारा
दृष्टिकोण नहीं बदल पाएगा।।

©®आशी प्रतिभा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
भारत
मैं यह घोषणा करती हूं कि मेरे द्वारा लिखी गई यह कविता सर्वाधिकार सुरक्षित है।

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