समालोचन (कृति चौबे)

0
61

समालोचन!
_______________________
आज फिर पिघला है आकाश
नमी है दिल की ज़मीन पर
आज फिर बोए जाएंगे
कुछ बीज संकल्प के,
हृदय और मस्तिष्क के द्वंद ने
जोत डाली है….


इच्छाओं की ज़मीन को
पथरीली पड़ गई थी
यूं ही पड़ी हुई पीड़ा के भय से!
वर्षों तक ना बरसे मेघ ऐसे झूमकर
ना पनपा का कोई बीज
धरा की गर्भ से…..

अस्तित्व से विरक्त होकर जीना भी
क्या कम पीड़ादायी था!

©_कृति चौबे