Homeबुन्देलखण्ड दस्तकचल कांवरिया शिव के धाम।।

चल कांवरिया शिव के धाम।।

चल कांवरिया शिव के धाम।।

रामपुरा जालौन : हाथ में लाठी, कंधे पर कांवर, होठों पर ‘जय भोले’, सड़कों पर सरपट बढ़ते कदम। यह नजारा है कांवर यात्रा का। मीलों दूर से गंगा जल लेकर गांव की ओर आते और जाते कांवरियों से अनुपम दृश्य देखने को मिल रहा है।
महाशिवरात्रि पर्व का दृश्य अनूठा होता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव व मां पार्वती का विवाह हुआ था। अन्य तथ्य भी इस दिन से जुड़े हैं। बस तभी से इस दिन को लोग पूरी निष्ठा व विधि-विधान से मनाते आ रहे हैं। देव पूजा व अन्य परंपराओं के साथ कांवर यात्रा भी एक परंपरा या दूसरे शब्दों में कहें तो भक्ति भाव का हिस्सा है, जो महाशिवरात्रि की याद दिलाता है। मान्यता के अनुसार शिवभक्त महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग के अभिषेक के लिए गंगा घाट से जल लेकर आते हैं। इसके लिए कांवर बनाई जाती है तथा उसे विभिन्न वस्तुओं से सजाकर सुंदर रूप दिया जाता है। कांवर बनाने में बांस का प्रयोग किया जाता है। कांवर को भगवान शिव की तस्वीर, रंग-बिरंगे कपड़े, रूमाल, गंगाजल भरी कट्टियां आदि से सजाते हैं।
गंगा घाट से जल लेने के बाद कांविरये पैदल ही घर की ओर चल पड़ते हैं। शिवरात्रि के दिन तक कावरिये अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं। गंगाजल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
सावधानी जरूरी : दिन रात सड़क पर पैदल चलने में कांवरियों को तमाम खतरों का सामना करना पड़ता है। कावरियों के कुछ साथी हाथ में लाठी लेकर चलते हैं, जिससे बीच में आने वाले जानवरों व वाहनों को नियंत्रित कर सकें और किसी भी दुर्घटना से बच सकें। पैरों में बंधे घुंघरू चलते समय तेज आवाज करते हैं। दिन हो या रात इनकी आवाज सभी को आगाह करती है कि कांविरये आ रहे हैं। रात के समय रेंगने वाले जीव व कीटों को भी ये दूर रखते हैं।
रुद्राभिषेक का क्रेज : देवाधिदेव के रुद्राभिषेक को लेकर लोगों में खासा क्रेज बढ़ रहा है। सावन के सोमवार ही नहीं शिवरात्रि के पर्व पर भी भक्त रुद्धाभिषेक करते हैं। माना जाता है कि रुद्राभिषेक से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सावन के सोमवार हों या फिर महाशिवरात्रि के पर्व। इसके अलावा सामान्य दिनों में भी भगवान शिव का रुद्राभिषेक भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करता है। देवाधिदेव का गंगाजल, दूध, दही के अलावा शहद, देसी घी आदि से वेद मंत्रों के साथ पूजा अर्चना की जाती है। ज्योतिषाचार्य पं.उपेन्द्रनाथ चतुर्वेदी की मानें तो भगवान आशुतोष का रुद्राभिषेक फलदायी होता है। लोगों में इसके प्रति निरंतर लगाव बढ़ रहा है। सच्चे मन से की गई सेवा से प्रभु प्रसन्न होते हैं। इसकी विधि भी अलग है। लोगों को देवाधिदेव के रुद्राभिषेक में भाग लेते समय भावपूर्ण जयकार भी करनी चाहिए। यह विशेष फलदायी होती है।

देवपूजा-थाली में क्या हो
महाशिवरात्रि पर देवाधिदेव की पूजा के लिए गंगाजल, दूध, दही के साथ चंदन, बेलपत्र का विशेष महत्व है। भांग धतूरा, सिंघाड़ी, बेर, गुड़ आदि भी होना चाहिए। प्रभु के अभिषेक में बेलपत्र अवश्य चढ़ाएं, बेलपत्र न हो तो बेल का फल, फूल आदि भी चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। शुद्ध देसी घी की बाती या फिर धूप का इस्तेमाल आरती में कर सकते हैं।

व्रत का सामान : शिवरात्रि के दिन शिवभक्त व्रत भी रखते हैं। व्रत के दौरान आलू या फिर कुटू, सिंघाड़ी से निर्मित भोजन खाएं। दूध-दही, मावा से निर्मित मिठाइयां का सेवन करें। फलाहार का सेवन ही सर्वोत्तम है। खान-पान शुद्ध हो। विधि-विधान से पूजा कर प्रभु का भोग लगाएं। ज्यादा तली व तेज मिर्च मसालों को इस्तेमाल न किया जाए।

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