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देश के प्रति रहे समर्पित, आने वाली पीढ़ी को भारत के टुकड़े नहीं आर्थिक मजबूती चाहिए ताकि आप और हम सभी गर्व से कह सकें हां हम भारतीय हैं।

देश के प्रति रहे समर्पित, आने वाली पीढ़ी को भारत के टुकड़े नहीं आर्थिक मजबूती चाहिए ताकि आप और हम सभी गर्व से कह सकें हां हम भारतीय हैं।

वर्तमान दौर मैं आज फिर कुछ तथ्यों को लेकर सामाजिक बहस जारी है माहौल बहुत गर्म  है, परंतु इस बात से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता , क्योंकि यह बातें सिर्फ और सिर्फ एक राजनीति मुद्दे और भारत में चल रही गतिविधियों को बदलने के लिए ही यह सब घटित हो रहा है।
अभी हाल में ही बच्चों ने जिद की है कि उन्हें स्कूल में हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए, और इस बात पर कुछ राजनीति पार्टी बहस का मुद्दा बनाकर आपस में कटाक्ष कर रही है! सोचने वाली बात है यदि हिजाब पहना जाएगा तो जो भारत हिंदुत्व के लिए जाना जाता है वहां घूंघट की बात होना भी लाजमी है। परंतु अब हम लोगों को मिलकर सोचना है कि हम अपने आने वाली पीढ़ी को हिजाब और घूंघट या किसी धर्म का विशेष रंग की पोषक पहनकर स्कूल आने की अनुमति दी जाने पर जो बहस है , उसमें झोंक दें या उनका भविष्य देखते हुए उन्हें वर्तमान में आर्थिक स्थिति एवं भारत के महत्वपूर्ण कार्य का हिस्सा बनने के लिए तैयार करें , यह हमें ही सोचना है “सच “!
माफ कीजिएगा  पर मैं किसी भी धर्म का या किसी अन्य धर्म में क्या चल रहा है इसके खिलाफ नहीं हूं ना ही किसी प्रथा के खिलाफ हूं जो कि संस्कार व सभ्यता रखती है,  परंतु मुझे एक बात समझ में नहीं आती आखिर भारत का युवा चाहता क्या है जिस भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई लिखाई सब भारत की स्वतंत्रता के लिए कुर्बान कर दी आखिर ऐसे वीर क्रांतिकारियों की कुर्बानी यदि व्यर्थ जाती है भारत मैं एकमत होने की जगह यदि  हम हर धर्म के अलग-अलग गुट बनाने  लगे और सब अपनी अपनी मांगे लाने लगे तो फिर भारत मैं एक शासन और एक लोकतंत्र का अर्थ ही क्या रह जाता है ।
जरूरी यह नहीं है कि हमारी जाति या किसी विशेष धर्म की क्या परंपरा रही है आज जरूरी यह है कि हमारे भारत का जो संविधान है उसके अनुसार बच्चों को विद्यालय एक गणवेश धारण करके ही जाना चाहिए और यह उचित भी है। जैसे हम लोग 15 अगस्त एवं 26 जनवरी पर अलग अलग राज्य अलग-अलग क्षेत्र एवम अलग-अलग भाषा संस्कृति के होने के बावजूद हमारा तिरंगा एक ही है और उसे ही फहराया जाता है हर जगह वही हमारी भारत की शान है।
ठीक इसी प्रकार हर विद्यालय में यह जरूरी है की हम अपने विद्यालय का ही गणवेश धारण करके  ही पढ़ाई की जाए! न की कोई भगवा या हिजाब पहनकर , इसमें किसी अन्य धर्म का अपमान या बच्चों में अपने धर्म के प्रति आस्था रखने में कोई कमी नजर नहीं आती हां आपको यदि हिजाब पहनकर ही अपने स्कूल पढ़ने जाना है तो इस प्रकार के बच्चे उर्दू की पढ़ाई अपने ही मदरसों और चर्च के द्वारा जो बनाए गए विद्यालय हैं उनमें जाकर कर सकते हैं क्योंकि वहां धार्मिक पढ़ाई की जाती है जिस प्रकार वेद पुराण पढ़ाने वाले गुरुकुल अलग होते हैं वहां हमारी गणवेश वेद पुराण बाली ही होती है, धोती , गमछा और जनेऊ , सर पर चोटी अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य बस यही है कि यदि हम सरकार के द्वारा बनाए गए अनुशासन को इस प्रकार तोड़ते रहे तो अन्य देशों में हमारे भारत का क्या मान रह जाएगा इसीलिए समय-समय पर की जाने वाली यह अनावश्यक मांगे व अनुचित उद्देश्य से बनाए क्रियाकलाप हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक नहीं।
आज हर कोई अपने संगठन की ओर संगठित हो रहा है और इसमें कोई बुराई नहीं परंतु हम किसी और का बुरा चाहे यह भी कोई अच्छी बात नहीं । हम सब भारत के वासी हैं और हम सबको अपने अपने संगठन में रहते हुए भी अपने भारत के लिए अच्छा ही सोचना चाहिए। अंत में , मैं सब से यही प्रार्थना करना चाहूंगी ! कि इस बात को समझे हम सब जाति धर्म के आधार पर अलग हो सकते हैं, पर मानव अधिकार पर हम सब एक हैं हम  मानव है, हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और उससे भी ऊपर है हमारा भारत जिसमें हम रहते हैं तो उसका जो भी संविधान है उसका सम्मान करना ! उसका पालन करना हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए अपने देश के प्रति हमें समर्पित होना चाहिए।

प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर

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