जलियांवाला बाग की याद

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यहाँ कोकिला नहीं काग है ,शोर मचाते
काले- काले कीट ,भ्रमर का भ्रम उपजाते।।
सुप्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘ जलिंयावाला बाग में बसंत’ में इस मार्मिक चित्रण से भारतीय जनमानस की संवेदना को स्वर प्रदान किया है। कई मायनों में जलिंयावाला वाला बाग एक ऐसा प्रस्थान बिंदु है , जिसने भारत की आजादी की लड़ाई के मायने,तरीके, और उदेश्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। अंग्रेजी सत्ता के चरित्र को लेकर जो भी संशय था वो अब दूर हो चुका था। राष्ट्रीय चेतना का वो धड़ा जिसे British Justice and Honour पर भरोसा था ,जैसे नींद से जागा हो और साम्राज्यवाद के कुत्सित चेहरे से रूबरू हुआ।

प्रथम विश्व युद्ध खत्म हो चुका था और अभी-अभी कुचले गए ‘ गदर आंदोलन’ और तृतीय अफगान युद्ध की पृष्ठभूमि में शासक और शासित का एक दूसरे के प्रति अविश्वास अपने चरम पर था।

10 मार्च 1919 : भारतीयों के व्यापक विरोध के बावजूद 1915 के Defence Of India Act के विस्तार रूप मे Rowlett Act का काला कानून पास किया गया। इस कानून ने भारतीय असंतोष की आग में घी का काम किया।’ न अपील, न दलील, न वकील’ की तर्ज पर ये कानून शांति काल के बावजूद नागरिक अधिकारों को कुचलने के लिए लाया गया था।
अप्रैल के पहले हफ्ते के अंत तक पंजाब में जनता सड़कों पर उतर आई थी। लाहौर के अनारकली बाजार मे 20000 से अधिक प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माईकल ओ डवायर को इतना उत्तेजित किया कि उसनें पंजाब मे मार्शल लॉ लगाने की अनुशंसा कर दी।

10 अप्रैल के दिन अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इरविंग के घर के बाहर एक भीड लोकप्रिय नेता सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू की रिहाई की मांग करने इकठ्ठा हुई । उसके बाद तो मारसेला शेरवुड नाम की ब्रिटिश महिला के साथ बदतमीजी को बहाना बनाकर लोगो को जमीन पर लेटकर चलने को मजबूर किया गया।

13 अप्रैल 1919 : ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अमृतसर शहर मे कर्फ्यू लगा दिया।बैसाखी के मेले से लौटती जनता कंहैया लाल शास्त्री और मोहम्मद. बशीर की अध्यक्षता मे होने वाली सभा मे इकट्ठा होने लगी।सभा सैफ़ुद्दीन किचलू और सतयपाल की रिहाई की मांग के लिए बुलाई गयी थी। आम पंजाबी सिख,हिंदू और मुसलमान, पंजाबी साल के सबसे बड़े दिन की खुशी मना रहे थे ।अपना देश, अपनी जमीन, अपनी मां बोली ( मातृभाषा) अपनी बसोआ ( बसंत) का जश्न मना रहे थे,लेकिन जनरल डायर तो इन निहत्थे खेतिहर पंजाबियों को तथाकथित White Man’s Burden समझाना चाह रहे थे ।नस्लीय श्रेष्ठता और शासित के प्रति घृणा का ऐसा उदाहरण दुनिया मे कही नही मिलता।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खाकर
कलिंया उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।।।

13 अप्रैल1919
लगभग 2:30 के आसपास जनरल डायर ने गोरखा राइफल्स, 54 सिख राइफल्स और 59 राइफल्स के 90 जवानो को जिसमे 50 हथियार बंद थे, को लेकर जलियांवाला बाग को घेरा और कुछ. ही पलो में .303 Lee Enfield Bolt Action Rifles निहत्थे भारतीयों पर बरस पड़ी । 10 मिनट की इस.गोलीबारी मे 1650 राउंड गोलियां चलाई गई क्योंकि इरादा भीड़ को हटाना नहीं बल्कि जनरल डायर के शब्दों मे ‘ भारतीयों को सबक सिखाना था’ ।

शासक के इस कुत्सित चेहरे को देखिए जिसने भारतीयो के हाथो भारतीयों को मरवाया।

हंटर कमीशन ने औपचारिक आलोचना के बाद जनरल डायर को बरी किया । इस कमीशन के दस्तावेजों को पढने से किसी भी भारतीय का खून खौल उठेगा। हंटर कमीशन के भारतीय सदस्यों ने अपनी अलग रिपोर्ट मे जनरल डायर को कई मौको पर दोषी पाया । यहाँ तक कि विंसटन चर्चित ने इसे Monstrous act करार दिया। मृतकों की संख्या सेवा समिति सोसाईटी के हवाले से 389 बताई गई जो कि वास्तव मे 1500 थी जिसमे 42 बच्चे और 1 नवजात भी था। महात्मा गांधी और सवामी श्रद्धानंद ने भी 1500 की संख्या को ही माना है। क ई मायनों में जलिंयावाला बाग सिर्फ एक हत्याकांड नही था बल्कि निहत्थे भारतीयों का महान बलिदान था जिसने क्रांतिकारी आंदोलन के दूसरी लहर को शुरू किया और मुख्य धारा की याचक नीति को रावी मे हमेशा के लिए फेंक दिया।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे है गोली खाकर
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर।

इक्कीस वर्ष बाद 1940 मे सरदार उधम सिंह ने उस समय के पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माईकल ओ डायर को मारकर जलियांवाला बाग का बदला लिया।

यह सब करना किंतु यहाँ मत शोर मचाना
यह है शोक- स्थान ,बहुत धीरे से आना।।।

73 साल की आजादी के बाद भी अंग्रेजों से जलिंयावाला बाग की माफी का इंतजार है।।।।

जय हिंद

शुभेंदु भट्टाचार्य
प्रवक्ता- अंग्रेजी
जवाहर नवोदय विद्यालय, चंदौली