तुम शाम को ढूंढ़ते रहना मुझको।
मैं साथ सूरज के निकल जाऊंगा।।
सिमटने का शौक़ है मुझको।
ना सोचो बिखर जाऊंगा।।
तुम शाम को ढूंढ़ते रहना मुझको …
आवाज़ को अपनी चलो पहना दो।
वोह नुपुर खामोशी के।।
जिन पर थिरक तो लेंगी परियां यादों की।
वहां मैं जिधर जाऊंगा
तुम शाम को ढूंढ़ते रहना मुझको…
तुम श्रृंगार कर ना सकीं सामने मेरे
मैं आईना बस बना रहा तुम्हारा
तुम देहरी पर रखे रहना शाम
चिराग कोई मैं दीवार से तुम्हारी उतर जाऊंगा
तुम शाम को ढूंढ़ते रहना मुझको
मैं साथ सूरज के निकल जाऊंगा
सिमटने का शौक़ है मुझको
ना सोचो बिखर जाऊंगा…