आजकल शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर या दूल्हा बड़ा तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं, और फिर वधु पक्ष के लोग भी वधु को गोद में उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम सम्पन्न करवा पाते हैं, आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम? यह मन मे विचार कौंधता रहता है लेकिन हमारी आने वाली नस्लों में इसका कोई प्रभाव ना देखकर आश्चर्य होता है क्योंकि आज हम जहा है वही कल वे होगे तब हमारे जैसा सोच होने पर पश्चाताप के शिवाय कुछ नही कर सकेंगे।
अखंड राजपुताना सेवासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर पी सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे है, और अपनी जीवनसँगनी को हजार-पांच सौ लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बनाकर रह जाते हैं, कोई प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है भगवान् प्रभु श्रीराम जी ने सम्मान सहित कितनी सहजता से सिर झुकाकर सीता जी से वरमाला पहनी थी जिसको हम धर्म के समान स्वीकार करके जीवन मे एक अतिमहत्वपूर्ण क्षण मानते है उस संस्कार की यह स्थिति देखकर ही अंतरात्मा दुःख से भर जाती है । हम वैश्विक शिक्षा देने के मद मे अपने ही संस्कृति का नाश कर रहे यह प्रतित होता है ।
रामो विग्रहवानो धर्म:
यही हमारी परंपरा है
विवाह एक पवित्र बंधन है, संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनने दे.. यही समस्त सनातनी वंशजों से आग्रह है।।